ऋषिकेश। उत्तराखंड राज्य में एक ऑटोनोमस कॉलेज था। यूजीसी ने कॉलेज के प्राध्यापकों के बेहतर कार्य, कॉलेज की आधारभूत संरचना और भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए ऑटोनोमी दी थी।
इस ऑटोनोमी पर ऋषिकेश के जागरूक लोग, छात्र और प्राध्यापक खूब इतराते थे। यकीन मानिए ऑटोनोमस कॉलेज हर किसी को गर्व महसूस कराता था। यहां के छात्रों में कॉलेज विद डिफरेंस की भावना बलवती होने लगी थी।
यहां एडमिशन के लिए उच्च मानदंड स्थापित हो चुके थे। उच्च शिक्षा में मची भीड़ में ये बड़ी उपलब्धि थी। ऋषिकेश कॉलेज के ऑटोनोमस बनने के सफर में मै भी दर्शक की भूमिका में रहा हूं। ऑटोनोमी के बारे में शासन से एनओसी मिलने में हो रहे विलंब का कारण बार-बार पूछने, सवाल उठाने पर कई अधिकारियों की नाराजगी भी झेली।
बहरहाल, 2004 में कॉलेज की नैक निरीक्षण की तैयारियां को नजदीक से देखा। नैक की तैयारियां में रात दिन जुटे विद्धान प्राध्यापकों को हर समय काम करते देखा। नैक से मिले ए ग्रेड से कॉलेज ऑटोनोमी की ओर बढ़ा। इसमें कॉलेज के एक-एक प्राध्यापकों की दिन रात की मेहनत है।
ऑटोनोमी को धरातल पर उतारने में भी प्राध्यापकों ने खासा पसीना बहा। आज के दौर में सरकारी सिस्टम में ये उपलब्धि हासिल करना बेहद मुश्किल है। कॉलेज के प्राध्यापक समाज और छात्रों को समझाने में सफल रहे।
छात्र और समाज ने भी इस बात को स्वीकार किया कि ऋषिकेश कॉलेज कुछ हटकर है। यहां हर किसी को एडमिशन संभव नहीं है। इस सहयोग से ऑटोनोमस कॉलेज चल निकला। यही नहीं इसने उच्च शिक्षा में ऋषिकेश के साथ व्यापक पहचान जोड़ी।
अचानक ये बड़ी उपलब्धि कुछ लोगों को खलने लगी। इसके बाद ऑटोनोमस कॉलेज को ठिकाने लगाने के प्रपंच शुरू हुए। कुछ लाभ की गरज से आखिरकार ऑटोनोमस कॉलेज और इतिहास बनने की ओर अग्रसर कर दिया गया।
इस मामले में हैरान करने वाली बात ये है कि ऑटोनोमस कॉलेज बनाने में रात दिन एक करने वाले प्राध्यापकों ने इसके मिटते अस्तित्व पर मुंह नहीं खोला। राज्य के बुद्धिजीवियों की इस चुप्पी पर भी समय जवाब मांगेगे।