देहरादून। बहुसंख्य शिक्षक/कर्मचारियों की खुशी पुरानी पेंशन बहाली में है। मगर, सरकार इस सरकारी कर्मियों के इस खुशी पर मुंह खोलने को तैयार नहीं है और विपक्ष इसे मुददा नहीं बना रहा है। कहा जा सकता है कि इस मामले सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनां कठघरे में हैं।
सरकार/ विभाग पहले शिक्षक/कर्मचारियों के बेवजह प्रमोशन रोकते हैं। भर्तियों को लटकाया जाता है। बेरोजगारों को नौकरी और नौकरी वालों को प्रमोशन के लिए तरसाती है। फिर चुनावी वर्ष में मीडिया ट्रायल कराया जाता है।
हांगे बंपर प्रमोशन, बंपर नियुक्तियां आदि-आदि। अखिल भारतीय सेवाओं को छोड़ दिया जाए तो राज्य की सेवाओं में ऐसा हो रहा है। कहा जा सकता है कि ये सरकार का सिस्टम बन गया है। उत्तराखंड राज्य में शिक्षा विभाग से सबसे अधिक कार्मिकों वाला विभाग है।
लिहाजा उसे खुश करने के लिए इन दिनों खूब बातें हो रही हैं। मगर, असली मुददे पर न तो सरकार मुंह खोल रही है और विपक्ष ही उठा रहा है। मुददा है 2004 के बाद सरकारी सेवा में आए शिक्षक/कर्मचारियों की पेंशन का।
शिक्षक/कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं। नई पेंशन योजना को धोखा बताया जा रहा है। इसे दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। सेवानिवृत्त जीवन को लेकर चिंतित शिक्षक/कर्मचारी परेशान हैं। इस परेशानी का असर दो-चार साल बाद सिस्टम में दिखने लगेगा।
ऐसे में जरूरी है कि शिक्षक/कर्मचारियों की असली खुशी पुरानी पेंशन बहाल की जाए। इस पर सत्ता पक्ष की चुप्पी को तोड़ने के लिए अभी तक विपक्ष ने भी कोई प्रयास नहीं किए। ये सब बातें शिक्षक/कर्मचारियों के मन में है।