देहरादून। उत्तराखंड की सियासत का बड़ा नाम डा. हरक सिंह रावत राजनीति की नई डगर पर हैं। 2022 का चुनाव न लड़ने के ऐलान के साथ जोड़े जाने वाले अगर-मगर इस बात का प्रमाण है।
राज्य के वन मंत्री डा. हरक सिंह रावत की राजनीति खुली किताब की तरह है। डंके की चोट पर राजनीति करने वाले डा. रावत को कोई खास विचारधारा नहीं बांध सकी। उन्होंने जब चाह तेवर दिखाए और जनता ने उन्हें पसंद भी किया।
वो भाजपा छोड़ बसपा में भी रहे। कांग्रेस में गए और फिर भाजपा में लौट आए। जिस भी दल में रहे बड़े चेहरे के रूप में रहे। राज्य की राजनीति में वो सिर्फ मुख्यमंत्री के ही पद पर नहीं रहे। यूपी और उत्तराखंड में कई बार विधायक और मंत्री रहे।
बहरहाल, उनके 2022 में विधानसभा का चुनाव न लड़ने का ऐलान की खूब चर्चा हो रही है। भाजपा उनके ऐलान को समझने का प्रयास कर रही है। उनके आस-पास के लोगों की टोह ली जा रही है। मगर, डा. रावत के ऐलान का अभी ठीक-ठीक से अंदाजा नहीं लग पा रहा है।
दरअसल, ये डा. हरक सिंह रावत की राजनीति की नई डगर है। इसके संकेत कई स्तर पर देखने और सुनने को मिल रहे हैं। इसमें अगर-मगर भी शामिल है। अक्सर ऐलान के साथ अगर-मगर, का उपयोग नेता बात को छिपाने और दिखाने के लिए करते हैं। ऐसा कुछ-कुछ यहां भी होता दिख रहा है।
डा. हरक सिंह रावत का चुनाव न लड़ने के ऐलान से शुरू हो रही नई डगर आने वाले दिनों में किस दिशा में पग बढ़ाती है ये देखने वाली बात होगी।