देहरादून। उत्तराखंड में खाद्यान घोटाले की शुरूआत राज्य गठन के समय से ही हो गई थी। मामले कई बार सामने आए। मगर, सरकारों ने इस पर गौर करना उचित नहीं समझा।
खाद्यान खरीद से लेकर गोदाम तक पहुंचाने के क्रम में तमाम अनियमितताओं की बातें सामने आती रही हैं। खरीद के बाद गोदाम के लिए रवाना किए गए खाद्यान और गोदामों के रिकॉर्ड में भारी अंतर की बात भी होती रहे हैं।
बवजूद सरकारों ने इस पर गौर नहीं किया। पहली बार मामले को एसआईटी को सौंपा गया। एसआईटी की प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद सरकार ने कुमाऊं मंडल के संभागीय खाद्य नियंत्रक वीएस धानिक का बर्खास्त कर दिया।
धानिक सेवा विस्तार के तहत इस पद पर काम कर रहे थे। बहरहाल, राज्य गठन के बाद से अब तक यदि गंभीरता से जांच हो जाए तो दर्जनों अधिकारियों का नपना तय है। देहरादून में बैठे आलाधिकारी भी इस आंच से नहीं बच पाएंगे।
अब देखने वाली बात ये होगी कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली त्रिवेंद्र रावत सरकार इस मामले को कैसे हैंडिल करती है। हाइवे घोटाले की सीबीआई जांच के मामले में तो प्रदेश सरकार कदम पीछे खींच चुकी है।