सुदीप पंचभैया।
लखनऊ। वास्तव में बेटियों का कोई जवाब नहीं। वो हर परिस्थितियों खड़े होने का जज्बा रखती हैं। अपने जज्बे से समाज के उन लोगों को जवाब देती हैं जो उन्हें कमजोर समझते हैं।
सोमवार को लखनऊ के डा. अंबेडकर पार्क जाने का मौका मिला। यहां से घुमकर बाहर निकले तो भूख लगने लगी। पार्क के गेट के ठीक सामने शीरोज रेस्टोरेंट का बोर्ड दिखा। बोर्ड के आस-पास लगी कुछ तस्वीरों ने ध्यान और गहराई से देखने और समझने को मजबूर किया।
यहां हाल ही में रिलीज हुई फिल्म छपाक का पोस्टर लगा था। आस-पास एसिड अटैक सर्वाइवर की फोटो दिखी। कुछ अजीब सा लगा। साथ ही अंदर जाने की जिज्ञासा और बढ़ गई। पत्नी नेहा और भतीजी स्नेहिका के साथ रेस्टोरेंट में दाखिल हुआ तो कुछ ही पल में सब कुछ समझ में आ गया।
दरअसल, इस रेस्टोरेंट का संचालन एसिड अटैक सर्वाइवर युवतियां करती हैं। खाना ऑर्डर करने के साथ ही इस अभिनव प्रयोग के बारे में जानने की उत्सुकता हुई तो काउंटर पर पहुंच गया। यहां अंशु राजपूत ने रेस्टारेंट के बारे में जानकारी दी।
उनके मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार के महिला कल्याण निगम और छांव फाउंडेशन की पहल पर ये अभिनव प्रयोग किया गया है। वर्ष 2016 में शुरू हुआ ये प्रयास अब एसिड अटैक सर्वाइवर की मेहनत और जज्बे से चल निकाला है। यहां से होने वाली आमदनी का उपयोग एसिड अटैक सर्वाइवर की चिकित्सा, शिक्षा, पुनर्वास पर खर्च किया जाता है।
बहरहाल, यहां काम कर रही 15 एसिड अटैक सर्वाइवर अमिट चिन्ह इन बेटियों के हौसले को नहीं डिगाते। वो अपने जज्बे से समाज के उन लोगों को जवाब देते हैं जो उन्हें कमजोर समझते हैं। ये बेटियां कहीं भी अपने बेचारगी नहीं दिखाती। रेस्टोरेंट चलाने का उनका अंदाज ठेठ प्रोफेशनल है।
हां, रेस्टोरेंट में लगी तमाम सूचना पटट उनके साथ हुए अन्याय की कहानी बयां करते हैं। आगे किसी बेटी पर देश में एसिड अटैक न हो सरकार से इस बात का गारंटी चाहते हैं। एसिड अटैक सर्वाइवर के लिए चिकित्सा स्वास्थ्स, शिक्षा, रोजगार आदि चाहती हैं। बेटियां चाहती हैं कि इस पर शोध हो कि आखिर एसिड अटैकर किस मन स्थिति में ऐसा कदम उठाते हैं।
शीरोज हैंग आउट कैफे की एसिड अटैक सर्वाइवर बेटियों के हौसले को नमन।