डा. मंजू भंडारी।
टिहरी बांध के जलाशय से आस-पास के बड़े क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है। वक्त के साथ पारिस्थितिकीय परिवर्तन साफ देखे और महसूस किए जा रहे हैं। जीवन पर भी इसका कई तरह से असर देखने को मिल रहा है।
टिहरी बांध निर्माण से करीब 42 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के विस्तार का जलाशय र्निमित हुआ। जलाशय का वर्तमान आकार 815 मीटर में प्राप्त किया है। जलाशय का उच्चतम स्तर (835 मीटर) सितम्बर माह में पहुचता है तथा न्यूनतम जल स्तर 762 मी0 मई व अप्रैल माह में रहता है।
जलाशय के बढते घटते जल स्तर की जद में टिहरी से चिन्यालीसौड़ धरासू तक चौडे़ भूभागों पर लगभग 250 मीटर चौडी पेटी का निर्माण होता है। इस रेतीली पेटी के निर्माण से झील के निकटवर्ती गांवों में अनेक प्रकार के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इससे समीपवर्ती पेटी में स्थित ग्राम अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए है, झील से प्रभावित होने वाला पारिस्थितिकी तंत्र लगभग 150 वर्ग किमी0 क्षेत्र में फैला हुआ है।
कालन्तर पर गौर करें तो मानसूनी वर्षा द्वारा बहाकर लाया जाने वाला जैव अपशिष्ट जिसमें वनस्पति मानव विष्टा मृत पशु के अवशेष तथा दाह संस्कार के पश्चात बचे मानव अवशेष आदि को भागीरथी नदी के अविरल प्रवाह द्वारा बहकर बंगाल की खाडी तक पहुचता था, परन्तु अब यह सब झील के जल में समाविष्ट होता जा रहा है। जिससे जल की रसायनिक संरचना परिवर्तित होती जा रही है।
इसके अतिरिक्त झील के जल में आग्नेय तथा रूपान्तरित चटटानों के विघटन से प्राप्त होने वाले रेडियो सक्रीय तत्वों का भी झील के जल में समावेश होता जा रहा है, और इन समीपवर्ती अधिवासों से जैव अपशिष्ट झील में जमा होता जा रहा है। इससे सबसे समीपवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले मानव तथा पशु का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।
टिहरी झील के निर्माण (2005) से पूर्व भागीरथी नदी धरासू टिहरी के बीच 42 किलोमीटर के लम्बाई में 4.7 मीटर प्रति किलोमीटर के ढाल पर बहती थी, जिसके दाये किनारे पर उत्तराखण्ड की विस्तृत नदी वेदिकायें (छाम दोबाटा) के क्षेत्र मे विकसित अधिवासों की श्रृंखला थी।
नदी की घाटी खुले ट आकार की थी। झील के बनने के फलस्वरूप समीपवर्ती ग्रामों के बहुत सी कृषि भूमि झील क्षेत्र में चली गयी। जिसकी मिटटी की संरचना मुख्य रूप से जलोढ़ प्रकृति की थी। पूर्व में मिटटी की विविधता के अनुरूप फसलों की सख्या अधिक थी जो अब सीमित हो गयी है।
वर्तमान पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण यौगिक झील का दौलायमान अग्रभाग है जिसका विस्तार एक संकरी पेटी में झील के दोनों ओर ढाल के अनुरूप न्यूनाधिक (150-200 मी0) चौडाई में फैला हुआ है। इसमें एक गौंण गतिक पारिस्थितिकी तंत्र सक्रीय है। जिसका प्रभाव झील के परिवर्तनशील जल स्तर के स्वरूप होता है।
झील के निर्माण से पूर्व इस पेटी में रवि की फसलों से युक्त खेत अथवा झाड झंकाड मिलते थे अब इसमें रेत शिल्ट तथा बजरी से ढके समतल पेटी मिलती है। जिससे मई जून माह मे सौर्यिक विकरण तथा परावर्तन के फलस्वरूप ऊर्जा का अवशोषण समीपवर्ती क्षेत्रों में होता है। इसके फलस्वरूप ग्रीष्मकालीन तापक्रम में वृद्धि हो रही है। तथा झील के जल आवरण के प्रभाव से शीतकालीन तापक्रम में कमी आने से जलवायु विषम होती जा रही है।
जलाशय के प्रभाव में वर्षा की प्रकृति भी समुचित रूप से प्रभावी हुई। बेमौसमी वर्षा (संवाहनिक) की भागीदारी बढ़ती जा रही है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप अधिकांश फसलों के पकने के समय में कमी आयी है। आद्रता के प्रभाव में प्राकृतिक वनस्पति पर अनुकूल प्रभाव हुआ है। नवर्निमित दौलयमान पारिस्थितिकी तंत्र ने प्रवासी पक्षियों को आकृषित किया है।
अगस्त से अक्टुबर माह के बीच 100 से 150 पक्षियों के झुण्ड इस पेटी में बने रहते है। दौलायमान संक्रमण पेटी झील में होने वाले निक्षेपों के फलस्वरूप डेल्टा सदृश्य प्रक्रिया के फलस्वरूप मुख्य घाटी तथा सहायक नदी नालों के निचले प्रभाव क्षेत्रों में 100-200 मीटर की दूरी तक सूक्ष्म तथा परिवर्तनशील स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
बदले हुए उष्णार्द्र ‘मौसम’ के प्रभाव में मछर मखियों को अनुकूल परिस्थितियां प्राप्त हुयी है। विस्तृत और प्रदूषित जलावरण के कारण मलेरिया, पेचिश, उल्टी तथा त्वचा से सम्बन्धित रोगों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। बढ़ते तापक्रम के प्रभाव में इस क्षेत्र की समशीतोष्ण जलवायु के विपरीत उष्णकटिबन्धीय बिमारियों को प्रोत्साहन मिला है।
नदी के ताजे जल में मिलने वाली मछलियों की तुलना में झील में मछलियों का आकार औसतन 05 गुना अधिक हो गया है। फसलों में मूंगफली, तिल, मक्का, रामदाना आदि में अप्रत्याशित कमी आयी है। इसके विपरीत झगोंरा, तोर, गहत, तथा मुख्य रूप से आलू के क्षेत्र में अप्रत्याक्षित वृद्धि हुई है।
खरीब की फसले पहले की तुलना में 15 से 20 दिन पहले तैयार हो जाती है। रबी की फसले 15-20 दिन देरी से पकते हैं। अपेक्षा की जाती है कि फसलों के उत्पादनता में वृद्धि होनी चाहिए। तथा बागवानी के लिए उपर्युक्त परिस्थितियां निर्मित हो रही है। नवनिर्मित झील पारिस्थितिकी तंत्र में जहां एक ओर परम्परागत जीवन निर्वहन करने वाले समुदाय के लिए समस्याऐं उत्पन्न हुई है। वहीं चिन्यालीसौड़ में (2018) बने क्षेत्र का सबसे बड़ा आर्च ब्रिज ने उत्तरकाशी और टिहरी जिले को जोडा जिसमें लगभग 40 ग्रामों की जनसंख्या को आवागमन की सुविधा प्राप्त हुयी है जिस करण वे अपने शिक्षा स्वास्थ्य एवं दैनिक आवश्यकता हेतु समीपवर्ती बाजारों तक सुगमता से पहुंच पा रहे है।
पुल के निर्माण से उत्तराकाशी जिले के पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए सम्भावनाएं समुचित हैं। जिनका समुचित दोहन होने पर क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए बहुआयामी संभावनाऐं निर्मित होगी। झील के जल में जैव-अपशिष्ट के निस्तारण पर टिहरी बांध प्रबन्धन को समुचित नीति अपनाने की आवश्कता हैं।
लेखिका गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
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1 Comment
Pawan nautiyal
Verry nice…..