उत्तराखंड में असफल साबित होता शहरीकरण
आधे घंटे की बारिश में जलमग्न हो जाते हैं छोटे बड़े शहर
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। देवभूमि उत्तराखंड में शहरीकरण असफल साबित हो रहा है। इस असफलता के पीछे पूरा सिस्टम साफ-साफ देखा जा सकता है। आधे घंटे की बारिश में राज्य के छोटे-बड़े शहर जलमग्न हो रहे हैं।
उत्तराखंड में सरकार गांवों को तेजी से शहर बना रही है। 23 सालों में नगर निगमों की संख्या नौ हो गई। यानि नेताओं के लिए खूब रोजगार के अवस पैदा हुए। शहरीकरण से आस-पास के सैकड़ों गांवों को ली गए हैं। ऐसा ही नगर पंचायतों का पालिका परिषद बनने पर हुआ।
करीब दर्जन भर नई नगर पंचायतों ने भी सैकड़ों गांवों को शहर बना दिया। मगर, यहां शहर जैसी सुविधाएं तो नहीं हैं। हां, दुविधाओं का अंबार खड़ा है। अब सरकार कुछ नए शहरों को बसाने की भी योजना है। मगर, सच ये है कि उत्तराखंड में शहरीकरण असफल साबित हो रहा है।
छोटी सरकार विभिन्न वजहों से डिलीवर करने में असफल साबित हो रही है। थोड़ी सी बारिश में राज्य के छोटे-बड़े शहर जलमग्न हो जाते हैं। यानि छोटी सरकार जल निकासी को प्रॉपर करने का काम भी नहीं कर पा रहे हैं। इसकी वजह व्यवस्थागत अतिक्रमण है।
वोट के धरातल पर स्थित इस अतिक्रमण को हटाने का दम सरकारें नहीं दिखा सकी हैं। परिणाम देहरादून हो या फिर नया-नया नगर निगम बना श्रीनगर सबका एक जैसा हाल है। छोटी सरकारें सिर्फ सड़कों के किनारे चूना डालने तक ही सीमित रह गई हैं।
शहर में जिस प्रकार की जन सुविधाओं की संरचनाएं होनी चाहिए वैसा दूर-दूर तक नहीं दिखता। जल निकासी होती नहीं और ट्रैफिक की निकासी भी दिनों-दिन मुश्किल हो रही है। कुल मिलाकर गांव का सुकून छीन गया और शहर में दिखाने के लिए कुछ नहीं है।
शहरों के विकास के लिए केंद्र की योजनाओं का खूब पैंसा मिलता है। योजनाओं के प्रस्ताव से लेकर बजट मिलने और बजट खपने तक नेता मीडिया के माध्यम से विकास के खूब सपने दिखाते हैं। आधे घंटे की बारिश सपनों की हककत को सामने रख देती है। क्या करना ऐसे शहरीकरण का। गांव को गांव ही रहने दो।