ऋषिकेश। आम लोग अपनी बात को राज्य और देश की पंचायत तक पहुंचाने, के लिए विधायक/ सांसद चुनते हैं। मगर, विधायक/सांसद पार्टी के होकर रह जाते हैं।
जनता से ताकत पाने वाले विधायक ताकत का उपयोग अपने राजनीतिक दल को मजबूत करने और दल के भीतर अपने आकाओं को खुश करने में लगा रहे हैं। चुनाव जीतने के बाद जनता के हित उनके लिए खास मायने नहीं रखते।
दरअसल, चुनाव जीतने के बाद विधायक जनता के बजाए पार्टी के हो जाते हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि पार्टी तय करती है कि विधायक के लिए क्या मुददे होंगे। दरअसल, विधायकों के लिए पार्टी लाइन ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है।
कई मसलों पर तो विधायक जनता के दुख-दर्द से भी कन्नी काट देते हैं। पिछले चार सालों में उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में ऐसे मामले सामने आए जहां विधायक जनता के बजाए अपने राजनीतिक दल के साथ खड़े हो गए।
कुछ विधायक तो जनता द्वारा उठाए गए क्षेत्र के मुददों पर भ्रम पैदा करते भी देखे गए। इस मामले में चुनाव के वक्त जनता से भी चूक होती है। नारों और किसी चेहरे के नाम पर किसी को भी जनप्रतिनिधि चुन देने से ऐसे हालात पैदा होते हैं।
क्षेत्र के सवालों, मुददों के बजाए दुनिया जहां के सवालों, सुनी सुनाई बातों पर वोट करने से भी ऐसे स्थिति पैदा हो रही है। जरूरी है कि जनता क्षेत्र के लिए विधायक चुने राजनीतिक दल के लिए नहीं।